less than 1 minute read

मंत्र तथा अर्थ (आभारित विवेकानन्द साहित्य)


1) किन्नाम रोदिषि सखे त्वयि सर्वशक्ति:
आमन्त्रयस्व भगवन् भगदं स्वरूपम्।
त्रैलोक्यमेतदखिलं तव पादमूले
आत्मैव हि प्रभवते न जडः कदाचित्।।


हे सखे, तुम क्योँ रो रहे हो ? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन्, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की हैं।


2) मा भैष्ट विद्वस्त्व नास्त्यपायः संसारसिन्धोस्तरणेsस्त्युपायः।

येनैव याता यतयोsस्य पारं तमेव मार्ग तव निर्दिशामि।।
(विवेकचुडामणी-४३)

हे विद्वन! डरो मत्; तुम्हारा नाश नहीं है, संसार-सागर के पार उतरने का उपाय है। जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग संसार सागर के पार उतरे हैं,वही श्रेष्ठ पथ मैं तुम्हे दिखाता हूँ!
( वि.स. १/८)


3) निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु।
लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ।।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा ।
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ।।</span>

</blockquote>

Comments