जो लोग जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हे उसी प्रकार भजता हूँ अर्थात उन पर उसी प्रकार अनुग्रह करता हूँ, क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।( गीता ४/११)
सम्माननीय बन्धुवर नमस्कार,स्वामी विवेकानन्द जी के शिकागो भाषण, जिसे सुन कर सारा विश्व उन्हे विश्व धर्म महासम्मेलनीके विजेता माने बिना रह न सके और उन्के भाषणो...
हे सखे, तुम क्योँ रो रहे हो ? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन्, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड की कोई ...
वर्तमान अवस्था में काम, अर्थ और यश – ये तीन बन्धन मानो मुझसे दूर हो गये हैं और पुनः यहाँ भी मैं वैसा ही अनुभव कर रहा हूँ, जैसा कभी भारतवर्ष में मैंने किया था...
मंत्र तथा अर्थ (आभारित विवेकानन्द साहित्य) 1) किन्नाम रोदिषि सखे त्वयि सर्वशक्ति:आमन्त्रयस्व भगवन् भगदं स्वरूपम्।त्रैलोक्यमेतदखिलं तव पादमूलेआत्मैव हि प्रभवत...
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